पंचम अध्याय पेज नंबर 31अक्षर पर निःशब्द है, मंडल दिव्य दर्शन। चेतन स्थिर शान्त है, गुणातीत स्वरूप ।
1 अक्षर पर निःशब्द है, मंडल दिव्य दर्शन। चेतन स्थिर शान्त है, गुणातीत स्वरूप । शब्दार्थ (अक्षर) ब्रह्म (पर) सूक्ष्म, अवस्थित (निःशब्द) निःअक्षर पूर्ण पुरुष (मंडल दिव्य मंडप) उपमाअक्षर प्रकाशमय परिधि, समाथि चेतन मंडल (चेतन) आत्मा (स्थिर) केन्द्रित, दृढ़ (शांत) द्वंद्वरहित (गुणातीत) त्रिगुणराहित (स्वरूप) सत्ता, अनुभूति। भाष्य अक्षर से परे सूक्ष्म सूक्ष्म के आगे निःशब्द का दिव्य मण्डल है। आत्मा उस दिव्य मंडल को त्रिगुणों के द्वन्द्व से प्राप्त कर स्थिर, शांत हो जाती है। प्रकृति मण्डल जाने पर त्रिगुणों के द्वन्द्व छूट जाते हैं और वह द्वन्द्वतीत योगी त्रिगुणों के घटक हो निःशब्द के दिव्य प्रकाश में स्थिर एवं शांत हो जाते हैं। यही गुणातीत योगी का शुद्ध स्वरूप है। 2 गुणातीत निर्द्वन्द्व है, पावें पुर नन्द। अगम्य वे गम्यें मिलतु है, होवे परमानन्द । शब्दार्थ (गुणातीत) त्रिगुणों से अव्यय (निर्द्वन्द्व) द्वन्द्ववस्तु (पूर्णानन्द) पूर्णपरमब्रह्म का आनन्द (अगम्य गम्य) मन, बुद्धि, इन्द्रिय से प्राप्त न होने योग्य, बल्कि प्रकृति पार चेतन अनुभव गम (मिलतु) प्राप्ति (परमानन्द) प्रकृति पार आत्म...