1 क्षर पर अक्षर गाजता, निःअक्षर सब पार। मण्डल तीनों अलग है, अनुभव ज्ञान अपार । शब्दार्थ (क्षर) अनित्य ब्रह्माण्डी जड़ शब्द और समग्र प्राकृतिक जड़ दृश्य (पर) ऊपर, उत्कृष्ट, आकृति (अक्षर) ब्रह्म (गजता) शक्तिपूर्ण गहन ऊंचा ध्वनि करना (सब पार) सबसे परे निःअक्षर, निःशब्द, परम पुरुष। भाष्य प्रकृति से बने हुए सभी पदार्थ क्षार हैं। क्षर एवं पदार्थ सदैव नाशवान अनित्य होते हैं। आकाश, वायु एवं अग्नि आदि पंच तत्त्व, जड़, अनित्य वस्तुएँ हैं। जो पदार्थ अपने से भिन्न दूसरे कारण से प्रकट होते हैं, वे सभी कृत्रिम पदार्थ क्षार हैं। प्रकृति की विकृति स्थावर, जड़ जगत् सभी क्षर हैं। प्रकृति मण्डल के संयोजित पंच शब्द, दस अनहद और सभी वर्ण, वाच्य शब्द क्षर, नाशवान है। एक पाद प्रकृति के घटक जो पदार्थ हैं, वे सभी क्षार हैं। दंत, ओष्ठ, मूढ़ रता और कण्ठ से, प्राणों के प्रयास से जो शब्द होते हैं, वे सभी क्षार हैं। राजयोग, हठयोग, मंत्रयोग, लययोग एवं जो चक्रों में शब्द प्रकट होते हैं, वे सभी क्षर हैं। पंच शब्दों में सोहं, शक्ति, रं तथा ओंकार आदि सभी शब्द क्षर, नाशवान हैं। श्वाँसा में सोहन की जो कल्पना की जाती ह...
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