3 प्रथम अध्याय स्वर्वेद दोहा और भाष्य।

1  निज अनुभव वरणन अरु दिया ज्ञान प्रभु सोय। तेरा है तुझमें रहे, करत समर्पण सोय।

शब्दार्थ 

अनुभव प्रकृति आधार छोड़कर शुद्ध चेतन आत्मा का पवित्र ज्ञान समर्पण, सुपुर्द, सर्वस्व पणिधान।

भाष्य 

विहंगम, योग समाधि में जो ज्ञान प्राप्त हुआ है,उस अनुभूत, ज्ञान का वर्णन करता हूं। यह ज्ञान तेरा दिया हुआ है, और इसकी रक्षा भी तुम्हारे ही द्वारा होगी। इसलिए इस ज्ञान को मैं तुझे ही समर्पण करता हूं।

2 नित्य अनादि षट् वस्तु है, इनकार सब विस्तार। रुप गुण अरु कर्म का व्याख्या सकल पसार।

शब्दार्थ 

नित्य, सदैव एक रूप से रहने वाला अनादि, आदि -अन्तरहित रुप, अस्तित्व, स्वरूप गुण ऐश्वर्य कर्म क्रिया।

भाष्य 

नित्य अनादि छः पदार्थ है। उन्हि के अस्तित्व स्वरूप उनके कर्म गुण एवं, स्वभाव का विस्तारपूर्वक वर्णन इस सद्ग्रंथ स्वर्वेद में किया गया है।

3 चेतन चार स्वरूप है, जड़ है एक असार। जड़ चेतन से रहित है, एक बोध संसार।

शब्दार्थ 

चेतन, जिसका कोई कारण न हो, नित्य जड़, परिणाम विकासशील, तत्व असार चेतनारहित।

भाष्य 

उक्त छः पदार्थो में चार चेतन है। ब्रह्म जिव, परम पुरुष और नित्य अनादि सद्गुरु-ये चार पदार्थ चेतन है। प्रकृति अनित्य जड़ वस्तु है। जड़ में स्वयं क्रिया नहीं होती, उसकी क्रिया स्वयं चेतन द्वारा प्रकट होती है। इसलिए प्रकृति परिणामिनि, जड़ वस्तु है। काल एक पदार्थ है, जो जड़ - चेतन दोनों से रहित है, जिसके द्वारा प्रकृति - चक्र एक पाद सृष्टि चल रही है। काल के आधार पर ही यह संसार - चक्र चल रहा है। अतः काल भी एक नित्य वस्तु है। सृष्टि और प्रलय काल में ही होता है । दिन रात वर्ष मास सम्वतसर निमेष कला एवं क्षण ये सभी काल द्वारा ही चल रहे हैं।

72 चतुरयुगी 14 मन्वन्तर एवं यह कल्प सृष्टि ब्रह्म दिन और रात्रि सभी काल परिणाम में ही चल रहे हैं। बिना काल के सृष्टि नहीं होती। काल नित्य वस्तु है। यदि काल नहीं रहेगा तो प्रलय, कि गणना कैसे होगी? क्योंकि प्रलय में सुर्य के न होने से दिन - रात नहीं हो सकते । अतएव परब्रह्म काल द्वारा ही विकल्प प्रलय के पश्चात्, पुनः सृष्टि का निर्माण करता है। अतः स्वर्वेद में अनिलरवाच्य, प्ररम पुरुष अक्षर आत्मा अज एवं सद्गुरु,ये चेतन पदार्थ है, और प्रकृति एवं काल दो पदार्थ एक पाद सृष्टि में है। जिनमे परिणामशिल, प्रकृति कार्य - कारण - सम्बन्ध सृष्टि प्रवाह से नित्य है।


काल के आधार पर ही जगत् की रचना और लय होता है। इसलिए काल भी एक नित्य पदार्थ है। महर्षि कणाद् ने वैशेषिक में अपने नव द्रव्यों में काल को भी एक पदार्थ निरूपित किया है। अथर्ववेद में काल-सूक्त आया है। काल के प्रभाव से ही पृथिवी और दिव मण्डल के बीच अन्तरिक्ष में ये समस्त जगत् अखिल ब्रह्माण्डचक्र चल रहे हैं। सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र आदि ये सभी पदार्थ काल के नियन्त्रण में गतिशील होकर अपने कार्यो को करते हैं। श्वाँस-प्रश्वाँस की गति, आयु, मृत्यु, जन्म और भोग सभी काल में ही उपभोग कर रहे हैं। अतएव काल भी एक छठवाँ नित्य अनादि पदार्थ है।



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