स्वर्वेद भाष्य सहित और स्वागत गान।मंगल गान और उद्घोष। विहंगम योग
स्वागत - गान
आज स्वागत नीत्य गुरुवर सन्त शुभागम, आइये।
अध्यात्मविद्या, दिव्य ज्योति सोमरस बरसाये।
दोष दुर्गुण दुर करि के शुद्ध हंस बनाइये।
भेद गम गति ज्ञान गर्जन शक्ति, द्वार हटाइये।
खुले द्वारा शब्द सागर भक्तजन अन्हवाइये,
जन सदाफल विश्व शिक्षक शान आन बचाइये।
मंगल - गान
विश्व शांति नाम मंगल, परमगुर को ध्याइये।
वर्ग द्वन्द्व, अशान्ति दुर कर भाव भेद मिटाइये।
सार्वभौम समष्टि, बता ध्यात्म राज्य बनाइये।
भेष भाषा भाव जगमय, ज्ञान पर दरसाइये।
समृद्धि सुख शान्ति धरातल, स्वर्ग भूमी बनाइये।
विश्व शिक्षक जन सदाफल नीति स्वर अपनाइये।
उद्-घोष
अद् भुत मारग योग विहंगम, मैं तुमको बतलाऊंगा।
यदि विधिवत् तुम साधन करिहो अमरलोक पहुंचाऊंगा।
प्रकृति अधार तोहि छोड़वाऊं निज स्वरूप ठहराऊंगा।
सुरति उलटि के गगन चढ़ाऊं डोरी मकर कराऊंगा।
पिण्ड ब्रह्माण्ड शून्य जो अरषठ, ता ऊपर बैठाऊंगा।
अनुभव करने मोती बरसे अमित नद् द अन्हवाऊगा।
शुद्ध रूप मोहि हंस बनाऊं परम पुरुष दिखलाऊंगा।
वहां के दृश्य कोन मैं वरणों वाणी बुध्दि न पाऊंगा।
महाप्रभु अनन्त दयामय उनसे तोहि मिलाऊंगा।
कहै सदाफल परमानन्दा आवागमन मिटाऊंगा?
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