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दोहा नम्बर 4 एक सकल अस्कम्भ है, एक चलावनहार। बद्ध मुक्त तत्त्व एक है, एक छोड़ावनहार ।

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शब्दार्थ अस्कम्भ, जगत् को धारण करने वाला नित्य परब्रह्म चलावनहार, जगत् को। भाष्य   (1) चलाने वाला अक्षर ब्रह्म बद्ध, मुक्त, बन्धन और मुक्ति इन दोनों अवस्थाओं को प्राप्त करने वाला खला, जीवात्मा छोड़ावनहार, प्रकृति बन्धन से छुड़ाकर मुक्ति प्रदान करने वाले नित्य अनादि सद्‌गुरु सुकृत देव। भाष्यः- स्कम्भ अर्थात् अनिर्वाच्य निःशब्द परमपुरुष के आधार पर ही अक्षर द्वारा एकपाद में इस विशाल जगत् की रचना होती है। स्कम्भ, परब्रह्म के ईक्षण संकल्प से ही अक्षर ब्रह्म की सन्निधि से परमाणु मण्डल में कम्प, थर्राहट पैदा हो जाती है। इसलिए जगत् का अधिपति, आधार, सर्व प्रकाशक, जगन्नियन्ता, साक्षी एवं सर्वान्तर्यामी परब्रह्म है। इसी को सद्‌गुरु देव ने स्वर्वेद में 'स्कम्म' कहा है। अथर्ववेद के स्कम्भ सूक्त में स्कम्भ के स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसलिए स्कम्भ एक नित्य अनादि पदार्थ है। दूसरा पदार्थ, जिसको इस दोहे में 'चलावनहार' कहा गया है, वह 'अक्षर ब्रह्म' है। एक पाद जगत् के अन्दर जिसकी सत्ता से समस्त क्रिया हो रही है, वह 'अक्षर' है। परमाणु में गति अक्षर के संयोग ही द्वारा हो...

3 प्रथम अध्याय स्वर्वेद दोहा और भाष्य।

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1  निज अनुभव वरणन अरु दिया ज्ञान प्रभु सोय। तेरा है तुझमें रहे, करत समर्पण सोय। शब्दार्थ  अनुभव प्रकृति आधार छोड़कर शुद्ध चेतन आत्मा का पवित्र ज्ञान समर्पण, सुपुर्द, सर्वस्व पणिधान। भाष्य  विहंगम, योग समाधि में जो ज्ञान प्राप्त हुआ है,उस अनुभूत, ज्ञान का वर्णन करता हूं। यह ज्ञान तेरा दिया हुआ है, और इसकी रक्षा भी तुम्हारे ही द्वारा होगी। इसलिए इस ज्ञान को मैं तुझे ही समर्पण करता हूं। 2 नित्य अनादि षट् वस्तु है, इनकार सब विस्तार। रुप गुण अरु कर्म का व्याख्या सकल पसार। शब्दार्थ  नित्य, सदैव एक रूप से रहने वाला अनादि, आदि -अन्तरहित रुप, अस्तित्व, स्वरूप गुण ऐश्वर्य कर्म क्रिया। भाष्य  नित्य अनादि छः पदार्थ है। उन्हि के अस्तित्व स्वरूप उनके कर्म गुण एवं, स्वभाव का विस्तारपूर्वक वर्णन इस सद्ग्रंथ स्वर्वेद में किया गया है। 3 चेतन चार स्वरूप है, जड़ है एक असार। जड़ चेतन से रहित है, एक बोध संसार। शब्दार्थ  चेतन, जिसका कोई कारण न हो, नित्य जड़, परिणाम विकासशील, तत्व असार चेतनारहित। भाष्य  उक्त छः पदार्थो में चार चेतन है। ब्रह्म जिव, परम पुरुष और नित्य अनादि सद...

प्रथम मंडल प्रथम अध्याय। प्रार्थना दोहा

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सत्य असत्य से अलग है,सो पर सत्य स्वरूप। अकथ अलौकिक तत्व है, अज अनादि वर रुप। 1 शब्दार्थ  सत्य, एक रूप से रहने वाला अक्षर काल आत्मा असत्य, प्रकृति का कार्य जड़ अनित्य जगत बाह्य माया प्रपंच अलग, भिन्न सत्यं, स्वागत स्वजातीय विजातीय, भेद सून्य तीनो काल में एक से रहने वाला अकथ, वाणी से जिसका वर्णन न हो सके अलौकिक तत्व अप्राकृतिक, दिव्य चेतन स्वरूप के, नित्य अनादि जिसका कोई कारण नहीं है। वररुप, जो सर्व रुपों में अपने शुद्ध स्वरूप से विराजमान होकर सबका नियन्ता साक्षी हो महान् सच्चिदानंद स्वरुप से प्रकाशमान है। भाष्य  वह जगन्नियन्ता्, परब्रह्म, प्रकृति आत्मा काल आदि नित्य प्रदार्थों में व्यापक हो कर तिन पाद शुद्ध सच्चिदानंद, स्वरूप से प्रकाशमान है। उसका वर्णन वाणी एवं इन्द्रिया से नहीं हो सकता। वह अवाच्य परब्रह्म प्राकृतिक जड़ स्वरुपों से पृथक चेतन शुद्ध स्वरूप से प्रकाशमान है। उसके समान दूसरा कोई सजातिय पदार्थ नहि है, जिससे उसकी उपमा दी जाए, एवं उसके समान दूसरी कोई विजातीय वस्तु नहीं है कि समानता कर सके। वह व्यापक होने से स्वगत भेद-शून्य त्रिकालावाध्य, गुणातीत सबका स्वामी है। सर्वन...

स्वर्वेद भाष्य सहित और स्वागत गान।मंगल गान और उद्घोष। विहंगम योग

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  स्वागत - गान आज स्वागत नीत्य गुरुवर सन्त शुभागम, आइये। अध्यात्मविद्या, दिव्य ज्योति सोमरस बरसाये। दोष दुर्गुण दुर करि के शुद्ध हंस बनाइये। भेद गम गति ज्ञान गर्जन शक्ति, द्वार हटाइये। खुले द्वारा शब्द सागर भक्तजन अन्हवाइये, जन सदाफल विश्व शिक्षक शान आन बचाइये। मंगल - गान विश्व शांति नाम मंगल , परमगुर को ध्याइये। वर्ग द्वन्द्व, अशान्ति दुर कर भाव भेद मिटाइये। सार्वभौम समष्टि, बता ध्यात्म राज्य बनाइये। भेष भाषा भाव जगमय, ज्ञान पर दरसाइये। समृद्धि सुख शान्ति धरातल, स्वर्ग भूमी बनाइये। विश्व शिक्षक जन सदाफल नीति स्वर अपनाइये। उद्-घोष अद् भुत मारग योग विहंगम, मैं तुमको बतलाऊंगा। यदि विधिवत् तुम साधन करिहो अमरलोक पहुंचाऊंगा। प्रकृति अधार तोहि छोड़वाऊं निज स्वरूप ठहराऊंगा। सुरति उलटि के गगन चढ़ाऊं डोरी मकर कराऊंगा। पिण्ड ब्रह्माण्ड शून्य जो अरषठ, ता ऊपर बैठाऊंगा। अनुभव करने मोती बरसे अमित  नद् द अन्हवाऊगा। शुद्ध रूप मोहि हंस बनाऊं परम पुरुष दिखलाऊंगा। वहां के दृश्य कोन मैं वरणों वाणी बुध्दि न पाऊंगा। महाप्रभु अनन्त दयामय उनसे तोहि मिलाऊंगा। कहै सदाफल परमानन्दा आवागमन मिटाऊंगा?